सूत्र :अनेकद्रव्यसमवायाद्रूपविशेषाच्च रूपोपलब्धिः II3/1/36
सूत्र संख्या :36
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : रूप अग्नि का गुण और वह दो प्रकार का होता है, एक वह जो उद्भूत होने से प्रत्यक्ष होता है, दूसरा अनुद्भूत होने से प्रत्यक्ष नहीं होता, किन्तु अनुभव या स्पर्श से जाना जाता है। अनेक द्रव्य जब आपस में मिलते हैं तब उनमें रूप का अनुद्भव रहता है। आंख की किरणें अनुद्भूत रूप है।, इसलिए उनका प्रत्यक्ष नहीं होता, किन्तु अनुभव या स्पर्श से जाना जाता है अनेक द्रव्य जब आपस में मिलते है, तब उनमें रूप का उद्भव होता है और जब वे अपने कारण्रूप में रहते हैं तब उनमें रूप का अनुद्भव रहता हैं। आंख की किरणें अनुद्भूत रूप हैं इसलिए उनका प्रत्यक्ष नहीं होता। तेज के परमाणुओं या गुणों में यह देखा जाता है कि कहीं तो रूप और स्पर्श दोनों की उपलब्धि नहीं होती। जिसमें रूप स्पर्श दोनों की उपलब्धि होती है, उसी का प्रत्यक्ष होता है, जैसे सूर्य की किरणों का जिसमें केवल रूप की उपलब्धि होती है, स्पर्श की नहीं, उसका भी प्रत्यक्ष होता है, जैसे दीपक की किरणों का और जिसमें केवल स्पर्श की उपलब्धि होती है, रूप की नहीं, उसका भी प्रत्यक्ष होता होता है। जैसे उष्णजल में स्पर्श से अग्नि का प्रत्यक्ष होता है। जिसमें रूप और रूपर्श दोनों की उपलब्धि नहीं होती, उसका प्रत्यक्ष नहीं होता है। जैसे आंख की किरणों में न स्पर्श, इसीलिए उनका प्रत्यक्ष नहीं होता। आंख की किरणें भी सूर्य या दीपक की किरणों के समान उद्भूत रूप क्यों नही, इस प्रश्न का उत्तर देते हैं-