सूत्र :कर्मकारितश्चेन्द्रियाणां व्यूहः पुरुषार्थतन्त्रः II3/1/37
सूत्र संख्या :37
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : सब इन्द्रिय जीवात्मा के कर्मफल भोगने के वास्ते बनाये गये हैं और इन्द्रियों की सारी शक्ति जीवात्मा के अधीन है। तात्पर्य यह कि शरीर और इन्द्रियगण स्वतन्त्र नहीं हैं, वे जीवों के कर्मफल भोगने के वास्ते साधन बनाये गए हैं। यदि कर्मों का भोग न होता तो शरीर और इन्द्रिय भी न होते।
व्याख्या :
प्रश्न-आंख को तैजस क्यों माना जाए, जबकि उसका प्रत्यक्ष नहीं होता।
उत्तर- आंख बिना प्रकाश के काम नहीं कर सकती, प्रकाश उसका सहायक है और प्रकाश तेज का धर्म है, इलिए चक्षु तेजस है। फिर इसी की पुष्टि करते हैं-