सूत्र :न संकल्पनि-मित्तत्वाद्रागादीनाम् II3/1/27
सूत्र संख्या :27
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : सगुण द्रव्य की उत्पत्ति के समान रागादि की उत्पत्ति नहीं हो सकती, क्योंकि रागादि संकल्प मूलक हैं। घटादि कार्यों में रूपादि गुण समवाय सम्बन्ध से सदा बने रहते हैं, परन्तु आत्मा में राग सदा नहीं रहता, वह जब पूर्वानुभूत संस्कार या उनकी स्मृति से मन में कोई संकल्प उत्पन्न होता है, तभी राग या द्वेष की उत्पत्ति होती है, अन्यथा नहीं। अतएव राग के संकल्प मूलक होने से सगुण द्रव्यवत् उसकी उत्पत्ति नहीं हो सकती।
व्याख्या :
आत्म परीक्षा समाप्त हुई, अब दूसरे प्रमेय शरीर की परीक्षा आरम्भ करते हैं। प्रथम शरीर का मुख्य उपादान क्या हैं ? इसका प्रतिपादन करते हैं:-