सूत्र :प्रवृत्तिदोषजनितोऽर्थः फलम् II1/1/20
सूत्र संख्या :20
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : प्रवृत्ति और दोष से उत्पन्न जो सुख दुःख का ज्ञान है वह फल कहलाता है। सुख तथा दुःख कर्म का विपाक अर्थात् (शुभाशुभ) परिणाम हैं और यह (अर्थात् सुख और दुःख ) शरीर, इन्द्रिय, इन्द्रिय के विषय और मन की सत्ता में होते हैं। अतएव शरीरादि के द्वारा ही फल मिलता है। यह जो हमें सुख दुःख तथा मानापमानादि सहन करने पड़ते हैं यह सब फल रूप हैं, अब “यह फल हमें प्राप्त करना चाहिए और इसे त्यागना चाहिए“ इसके लिए फल के पैदा होने से पहले विचार करना चाहिए।
प्रश्न-दुःख किसे कहते हैं ?