सूत्र :युगपज्ज्ञानानुत्पत्तिर्मनसो लिङ्गम् II1/1/16
सूत्र संख्या :16
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : एक काल में दो ज्ञान कान पैदा होना यह मन का लिंग (लक्षण) है ।
व्याख्या :
प्रश्न-मन के मानने की क्या आवश्यकता है सब काम इन्द्रियों से ही चल जाएगा ?
उत्तर-स्मृति स्मरण आदि किसी इन्द्रिय का विषय नहीं है परन्तु उनकी सत्ता अवश्य है अतः उनका ग्रहण करने वाला कोई अन्य (साधन) इन्द्रिय अवश्य होना चाहिए जो बाह्येन्द्रियों से भिन्न हो और वह मन है क्योंकि किसी बाह्य इन्द्रिय का विषय स्मरण नहीं है अपरंच जब हम विचार में मग्न होते हैं उस समय जो पदार्थ हमारे सामने से गुजर जाते हैं, हमें उनका तनिक भी ज्ञान नहीं होता इससे स्पष्ट प्रतीत होता है कि जब मन इन्द्रियों से सम्बन्ध रखता है तभी ज्ञान होता है और जब नहीं रखता तब ज्ञान भी नहीं होता यदि मन कोई पृथक न होता तो केवल इन्द्रियों से ज्ञान होता और एक काल में पांचों इन्द्रियों के विषयों का ज्ञान भी हुआ करता पर ऐसा होता नहीं अतः मन को मानना पड़ता है।
प्रश्न-प्रवत्ति किसे कहते हैं ?