सूत्र :प्रवृत्तिर्वाग्बुद्धिशरीरारम्भः II1/1/17
सूत्र संख्या :17
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : इस सूत्र में बुद्धि से ‘मन’ अभिप्रेत है मन, इन्द्रिय और शरीर का काम में लगना प्रवृत्ति कहलाती है। यदि मन अकेला काम करता है तो वह कर्म मानसिक कहलाता है, यदि मन और वाणी दोनों मिल कर उस काम को करते है तो वह वाचक कर्म कहलाता है यदि मन इन्द्रिय और शरीर मिलकर काम में लगते हैं तो वह शारीरिक कर्म कहलाता है।
व्याख्या :
प्रश्न-प्रवृत्ति किस काम में होती है ?
उत्तर-पुण्य या पाप में ,अर्थात् जो भी कर्म किया जाएगा, उससे पुण्य या पाप अवश्य होगा ।
प्रश्न-पुण्य किसे कहते हैं ?
उत्तर-जिसका फल अत्यन्त को सुख हो अर्थात् भावी सुख के कारण का नाम पुण्य है।
प्रश्न-पाप किसे कहते हैं ?
उत्तर-जिसको फल आगे को दुःख हो ।
प्रश्न-दोष किसे कहते हैं ?