DARSHAN
दर्शन शास्त्र : न्याय दर्शन
 
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सूत्र :बुद्धिरुपलब्धिर्ज्ञानमित्यनर्थान्तरम् II1/1/15
सूत्र संख्या :15

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : अर्थ-बुद्धि, उपलब्धि और ज्ञान यह अलग-अलग वस्तु नहीं है किन्तु यह एक ही हैं।

व्याख्या :
प्रश्न-क्या बुद्धि भूतों से बनी हुई नहीं ? उत्तर-यदि भूतों से उत्पन्न होती तो जड़ और आत्मा का कारण (साधन होती और जड़ रूप कारण को ज्ञान होना असम्भव है यदि कहा जाय कि द्वितीय चेतन वस्तु है तो भी युक्त नहीं क्योंकि शरीर त्वचादि इन्द्रिय के संधात् (समुदाय) से एक ही चेतन है(?) यदि बुद्धि चेतन के गुण अर्थात् ज्ञान ही का नाम है। प्रश्न-मन किसे कहते हैं ?

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