सूत्र :गन्धरसरूपस्पर्शशब्दाः पृथिव्यादिगुणास्तदर्थाः II1/1/14
सूत्र संख्या :14
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पृथिव्यादि के गुण इन्द्रियों के अर्थ कहलाते हैं, पृथ्वी का गुण गन्ध है, वह (गन्ध) पार्थिवेन्द्रिय, घ्राण(नाक) का अर्थ है, जल का गुण रस है, वह जलेन्द्रिय, रसना(जिह्य) का अर्थ है, तेज अर्थात् वायु अग्नि का गुण रूप है वह तेज इन्द्रिय, नेत्र का अर्थ है। वायु-वीयेन्द्रिय त्वचा अर्थ स्पर्श है जो कि वायु का गुण है। शब्द आकाश का गुण है अतः आकाश के इन्द्रिय श्रोत्र(कान) का अर्थ है। (यहां ‘अर्थ’ का अर्थ ‘विषय’ है)।
प्रश्न-बुद्धि किसे कहते हैं ?