सूत्र :उपलभ्यमाने चानुपलब्धेरसत्त्वादनपदेशः II2/2/36
सूत्र संख्या :36
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : शब्द के विनाश का कारण अनुमान से प्रतीत होता है, इसलिए शब्द के नित्य होने में विनाश कारण की अनुपलब्धि को हेतु ठहराना ठीक नहीं। जब शब्द की उत्पत्ति का कारण है, तब अनुमान से उसके विनाश का कारण स्वंय सिद्ध होता है, क्योंकि जिसकी उत्पत्ति है, उसका विनाश अवश्य होगा।
व्याख्या :
प्रश्न - शब्द के नाश का कारण क्या हैं ?
उत्तर - जो शब्द उत्पत्ति धर्म वाला हैं, उसकी उत्पत्ति के लिए जो प्रयत्न किया जाता है, वही शब्द को उत्पन्न करके फिर उसके विनाश का कारण होता हैं, जब शब्दोच्चारण की किया समाप्त हो जाती है तब शब्द नष्ट हो जाता है।
प्रश्न - जो प्रयत्न शब्द की उत्पत्ति का कारण है वही उसके विनाश का कारण क्यों कर हो सकता हैं ?
उत्तर -जैसे संयोग वियोग कारण है, अर्थात् वियोग होने के लिए संयोग होता है। इसी प्रकार नाश होने के लिए पदार्थ की उत्पत्ति होती है, जिसकी उत्पत्ति है, उसका विनाश अवश्य होगा। जैसे कि देहादि, जब शब्द की उत्पत्ति वादी को भी सम्मत है तब उसके नाशवान् और अनित्य होने में सन्देह ही क्या है ?