सूत्र :प्रकृतिविवृद्धौ विकारविवृद्धेः II2/2/42
सूत्र संख्या :42
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जब किसी कार्य की प्रकृति अर्थात् उपादान कारण बढ़ जाता है तो वह कार्य भी बढ़ जाता है। जैसे एक सेर दूधसे जितना दही बन सकता है, पांच सेर दूध से उससे पांच गुना बन जायेगा। या पांच सेर मट्टी से जितना घड़ा बनता है, बीस सेर मिट्टी से उससे चौगुना बनेगा। जोकि वर्णों में प्रकृति के बढ़ने से विकार नहीं बढ़ता। जैसे एक इकार से यकार बनता है, वैसे दो इकार से दुगना यकार नहीं होता, इससे सिद्ध है कि वर्णों में विकार नहीं होता इसका उत्तर अगले सूत्र में देते हैं:-