सूत्र :अन्यदन्यस्माद-नन्यत्वादनन्यदित्यन्यताभावः II2/2/32
सूत्र संख्या :32
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : यह कहना कि अन्य होने पर भी बार-बार होना कहा जाता है, ठीक नहीं, क्योंकि अन्य होने की दशा में उनमे भेद होना चाहिए, जब भेद मानोगे, तो फिर उसी वस्तु का पुनः होना नहीं कहा जा सकता, किन्तु दूसरी वस्तु का भाव मानना पड़ेगा। इसलिए भेद के होने पर एक शब्द को कई बार कहना बन नहीं सकता। अतः घट शब्द को जितनी बार कहा जावेगा उसमें एकता का ही ज्ञान होगा, भिन्नता का नहीं। इसलिए एक ही शब्द बार-बार कहा जाने से नित्य है। इसका उत्तर:-