सूत्र :विनाशकारणानुपलब्धेः II2/2/34
सूत्र संख्या :34
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जितने अनित्य पदार्थ हैं, उनके विनाशकारण की उपलब्धि होती है, जैसे संयोग से घड़ा बनता है और वियोग से टूट जाता है तो संयोग कारण का विरोधी वियोग कारण है। अब यदि शब्द की उत्पत्ति मानी जावे तो उसके विनाश का कारण भी होना चाहिए, परन्तु नाश का कोई कारण उपलब्ध नहीं होता, इसलिए शब्द नित्य है। आगे इसका उत्तर देते हैं:-