सूत्र :तदभावे नास्त्यनन्यता तयोरितरेतरापे-क्षसिद्धेः II2/2/33
सूत्र संख्या :33
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जो तुम अन्य से अन्य कहकर फिर उसका खण्डन करते हो, यह ठीक नहीं। क्योंकि जो अन्य न हो, वह अनन्य (एक) कहलाता है। जब अन्य कोई वस्तु ही नहीं हैं, तब उसका खण्डन या अभाव हो ही नहीं सकता। इसलिए बिना अन्य के एक सिद्ध ही नहीं हो सकता, क्योंकि अन्य और एक ये दोनों परस्पर सापेक्ष्य है। जब अन्य के अभाव में तुम्हारी अनन्यता सिद्ध ही नहीं हो सकती, तब अन्यता का अभाव सिद्ध करके कैसे शब्द को नित्य सिद्ध कर सकोगे। अब वादी शब्द की नित्यता में और हेतु देता हैं:-