सूत्र :विनाशकारणानुपलब्धेश्चाव-स्थाने तन्नित्यत्वप्रसङ्गः II2/2/38
सूत्र संख्या :38
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : . यदि तुम ऐसा मानते हो कि शब्द के नाश का कारण नहीं है तो इससे शब्द का नित्यत्व पाया जाता है। यदि शब्द को नित्य माना जावे तो निरन्तर कानों से उसका श्रवण होना चाहिए, परन्तु ऐसा नहीं होता, जिससे स्पष्ट अवगत होता है कि प्रयत्न विशेष से शब्द उत्पन्न होता है और उस प्रयत्न के समाप्त हो जाने पर नष्ट हो जाता हैं, अतः शब्द अनित्य हैं वादी पुनः शंका करता हैं: