सूत्र :उभयोः पक्षयोरन्यतरस्याध्यापनादप्रतिषेधः II2/2/29
सूत्र संख्या :29
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जोकि शब्द की नित्य और अनित्य दोनों अवस्थाओं में पढ़ना और पढ़ाना हो सकता है। विद्या का दान उपस्थित वस्तु के दान के समान नहीं, किन्तु गुरु शिष्य को अपने उन प्रयत्न विशेषों से जो उस बोलने में करने पड़ते हें शिक्षा देता है। इसलिए पढ़ाने से शब्द का नित्य होना सिद्ध नहीं हो सकता।
इस प्रकार वादी फिर आक्षेप करता है:-