DARSHAN
दर्शन शास्त्र : न्याय दर्शन
 
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Darshan

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सूत्र :शब्दोऽनुमानमर्थ-स्यानुपलब्धेरनुमेयत्वात् II2/1/47
सूत्र संख्या :47

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : शब्द अनुमान से व्यतिरिक्त कोई प्रमाण नही हो सकता, क्योंकि जिस प्रकार अनुमेय के सम्बन्ध से भी जो ज्ञान उत्पन्न होता है, वह अनुमेय है। जैसे एक नियत शब्द चिन्ह धूप को देखर अग्नि का अनुमान किया जाता है वैसे ही नियत शब्द अग्नि या वहिृ को सुनकर आग काज्ञान हो जाता है। इसलिए अनुमान और शब्द में कोई भेद नहीं होता, शब्द को एक पृथक प्रमाण मानना व्यर्थ है।

व्याख्या :
प्रश्न- क्या शब्द और अनुमान दो पथक पदार्थ नहीं है? उत्तर- जबकि शब्द और अनुमान से एकसा ज्ञान होता है और उसका कारण भी व्याप्ति ज्ञान एक ही है तो दोनो को एक ही प्रमाण क्यज्ञें न माना जाये। प्रश्न- क्या शब्द और अर्थ का सम्बन्ध उसी प्रकार का है, जैसस कि लिंग और लिंगी का? उत्तर- किसी अर्थ को प्रकाश करने के लिए जब कोई शब्द कहा जाता है तो वह उसी अर्थ को प्रकाश करता है जिसके लिए कहा गया है, तदतिरिक्त व तद्भिन्न अर्थ को नहीं। इसी प्रकार लिंग भी अपने लिंगी के सिवाय और किसी वस्तु को नहीं बतलाता, अतएव इन दोनों को एक ही मानना चाहिए। सूत्रकार पूर्वपक्ष की पुष्टि में दूसरा हेतु देते हैं।

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