DARSHAN
दर्शन शास्त्र : योग दर्शन
 
Language

Darshan

Shlok

सूत्र :विवेकख्यातिरविप्लवा हानोपायः ॥॥2/26
सूत्र संख्या :26

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द

अर्थ : पद० - विवेकख्याति:। अविपल्लवा। हानोपाय:। पदा० -(अविपल्वा) विपल्लवरहित (विवेकख्याति:) विवेकज्ञान ही (हानोपाय:) हान का उपाय है।।

व्याख्या :
भाष्य - वासना सहित मिथ्याज्ञान का नाम “विपल्लव” है, विपल्लव, उपद्रव, मलिनक्षा, यह सब पय्र्याय शब्द है, जो विवेकख्याति, मिथ्याज्ञान त्था मिथ्याज्ञान की वासना के सहित उदय होती है वह विपल्लव वाली है और क्रियायोग के अनुष्ठान द्वारा वासनासहित मिथ्याज्ञान के सूक्ष्म हो जाने पर वीर्घकालनैरनतर्य्यसत्कारपूर्वक समाधि के अभ्यास से जो प्रज्ञा उत्पन्न होती है जिसका दूसरा नाम ऋतम्भरा है उसको अविपल्लवविवेकख्याति कहते हैं, क्योंकि उस काल में कियायोग के प्रभाव से कार्य्यसम्पादन में असमर्थ हुआ मिथ्याज्ञान उसको मलिन नहीं करसता, इसप्रकार वासनारहित मिथ्याज्ञानरूप उपद्रव से रहित हुइ निमर्ल विवेकाख्याति ही हान का उपाय है।। सं० - अब उक्त विवेकख्याति के उदय होने से जो योगी को प्रज्ञा उत्पन्न होती है उसका वर्णन करते हैं:-

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