सूत्र :श्रुतानुमानप्रज्ञाभ्यामन्यविषया विशेषार्थत्वात् ॥॥1/49
सूत्र संख्या :49
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द
अर्थ : पद०- श्रुतानुमानप्रज्ञाभ्यां। मन्यविषया। विशेषार्थत्वात्।
पदा० - (श्रुतानुमानप्रज्ञाभ्यां) शब्दज्ञान तथा अनुमान ज्ञान से (अन्यविषया) समाधिप्रज्ञा का विषय भिन्न है क्योंकि वह (विशषार्थत्वात्) यथार्थ अर्थ को विषय करती है।
व्याख्या :
भाष्य - अनुमान से जो ज्ञात होता है उसको अनुमानप्रज्ञा और शब्द से जो ज्ञात होता है उसका शब्दप्रज्ञा कहते हैं, यह दोनों प्रज्ञा सामान्य रूप से अर्थ को विषय करती है अर्थात् इनसे विषय का साक्षात्कार नहीं होता किन्तु ‘कोई वस्तु है’ इस प्रकार परोक्ष रूप से वस्तु का मान होता है, परन्तु समाधि प्रज्ञा से स्थूल सूक्ष्म सब पदार्थों का हस्तामलकवत् भान होता है इसलिये, यह प्रज्ञा अनुमान आदि प्रज्ञाओं से विलक्षण है, जिस योगी को यह प्राप्त होता है वह सर्वज्ञ हो जाता है।
सं० - अब उक्त प्राजन्य संस्कारों को व्युत्थान संस्कारों की प्रतिबन्धकता कथन करते हैं:-