सूत्र :ऋतंभरा तत्र प्रज्ञा ॥॥1/48
सूत्र संख्या :48
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द
अर्थ : पद० - ऋतंभरा। तत्र। प्रज्ञा ।
पदा० - (तत्र) उस निर्विचारसमाधि की निर्मलता होने पर एकाग्रचित्त योगी को जो (प्रज्ञा) जानकी प्राप्ति होती है योगीजन उसको (ऋतंभरा) ऋतंभरा प्रज्ञा कहते हैं।।
व्याख्या :
भाष्य - ऋत नाम विकल्प से रहित यथार्थ अर्थ को विषय करने के अध्यात्मप्रसाद की अन्वर्थ संज्ञाका नाम “ऋतंभरा” है।।
सं० - अब अनुमान ज्ञान तथा शब्दज्ञान से उक्त प्रज्ञा की उत्कृष्टता निरूपण करते हैं:-