सूत्र :धारणासु च योग्यता मनसः ॥॥2/53
सूत्र संख्या :53
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द
अर्थ : पद० - धारणासु । च । योग्यता । मनस:।
पदा० - (च) और (धारणासु) धारणाओं में (मनस:) चित्त की (योग्यता) सामथ्र्य हो जाती है।।
व्याख्या :
भाष्य - धारणा का लक्षण और उसके अनेक भेदों का निरूपण आगे विभूतिपाद में करेंगे, प्राणायाम के सिद्ध होने से चित्त धारण के योग्य हो जाता है।।
तात्पर्य्य यह है कि जब चित्त प्राणायाम क्षीणावरण हो जाता है तब जिस पदार्थ में लगाया जाय उसी में स्थिर हो जाता है अर्थात् फिर विक्षिप्त नहीं होता, चित्त का विक्षिप्त न होना ही प्राणायाम सिद्धि का चिन्ह है।।
सं० - अब प्रत्याहार का लक्षण करते हैं:-