सूत्र :ततो द्वङ्द्वानभिघातः ॥॥2/48
सूत्र संख्या :48
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द
अर्थ : पद० - तत:। द्वन्द्वानभिघात:।
पदा० - (तत:) आसन के सिद्ध होने से (द्वन्द्वानभिघात:) शीत, उष्णादि द्वन्द्वों का प्रतिकूल सम्बन्ध नहीं होता।।
व्याख्या :
भाष्य - जब योगी का आसन सिद्ध हो जाता है तब इसको शीत उष्णादिक द्वन्द्व नहीं सताते।।
सं० - अब प्राणायम का लक्षण कथन करते है:-