सूत्र :न कर्माविभागाद् इति चेन् नानादित्वाद् 2/1/34
सूत्र संख्या :34
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पदार्थ- (न) नहीं (कर्म विभागात्) कर्म के भेद से (इति) यह (चेत्) यदि शंका हो (न) नहीं हो सकता (अनादित्वात्) कर्म का संबंध अनादि होने से।
व्याख्या :
अर्थ- कर्म के कारण से सृष्टि की उत्पत्ति को बतला कर जो ईश्वर पर से निर्दयी और पक्षपाती होने के आक्षेप को दूर किया था, इस पर विपक्षी शंका करता है। उस सत् परमात्मा से सृष्टि उत्पन्न हुई, तो उस समय कर्म विद्यमान नहीं थे, तो उस समय जो सृष्टि में भेद हुआ, उसका कारण क्या है? यदि कहो कर्म, तो हो नहीं सकते; क्योंकि सत् से सृष्टि आरम्भ होती है। यदि कर्मों के बिना उस समय भेद हुआ, तो भी ईश्वर पर वही आक्षेप होगा, विपक्षी का इस शंका के उत्तर में कहते हैं कि यह कथन उचित नहीं; क्योंकि ईश्वर स्वाभाविक कर्ता के कारण कर्म भी अनादि है। जब कर्म अनादि हैं, तो प्रति सृष्टि के आदि में जो भेद होगा, उनका कारण वे कर्म ही होंगे। इससे ईश्वर पर यह आक्षेप आरोपित नहीं हो सकता, इस कारण ईश्वर पर उस अवस्था में दोष आरोपित होता है, जब हम कर्म को आदि मानते हैं जब कि प्रवाह से संसार अनादि है, तो यह दोषारोपण नहीं हो सकता।
प्रश्न- किस प्रमाण से जाना जाता है कि यह संसार अनादि है?