सूत्र :तत्त्वं भावेन 2/2/8
सूत्र संख्या :8
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : सत्ता के समान समय के गुण भी सामान्य होने से सर्वज्ञ पाये जाते हैं उनमें कोई विशेषता नहीं होती, इसलिए काल को भी एक ही जानना चाहि।
व्याख्या :
प्रश्न- तीन काल तो प्रसिद्ध ही है? एक भूत, दूसरा भविष्यत् और तीसरा वर्तमान।
उत्तर- यह काल का विभाग कार्य के होने से गोण है मुख्य नहीं, क्योंकि कार्य उत्पन्न होगा इससे कार्य का आगे होना सिद्ध होता है घड़ा हुआ था इससे घड़े की व्यतीत अवस्था का ज्ञान होता है और घड़ा है, इससे घड़े की वर्तमान अवस्था जानी जाती है यह भेद अवस्थाओं के कारण हैं। वास्तव में काल में कोई विशेषता नहीं है जिससे अनेक काल समझे जावें।
प्रश्न- जबकि सैकण्ड, मिनठ, घण्टादिन, रात, पक्ष, महीना और वर्ष आदि काल के भेद देखे जाते हैं, तो काल को एक कैसे मान सकते हैं ?
उत्तर- यह भेद काल में नहीं किन्तु सूर्य आदि के परिभ्रमण से उत्पन्न होने वाली अवस्थाओं को काल मान लिया जाता है, जैसे कि समीप में लाल फूल रखने से फूल में लाली दीख पड़ती है दूसरे हीरे के पास फूल रखने से पीलापन दीख पड़ता है। क्या लाली और पीलापन का अन्तर हीरे में है? कदापि नहीं। यह तो फूलों के कारण प्रतीत होता है। ऐसे ही सूर्य और चन्द्रमा आदि के घूमने से काल के भेद प्रतीत होते हैं।