सूत्र :अपरस्मिन्नपरं युगपच्चिरं क्षिप्रमिति काललिङ्गानि 2/2/6
सूत्र संख्या :6
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : काल के लिंग ये हैं-यह इससे पूर्व है, इसके पश्चात् है, दोनों एक साथ हैं और जल्दी और देरी का जो ज्ञान होता है, उसकों काल का लिंग समझना चाहिए। जैसे राम कृष्ण से पूर्व आया। शब्द ‘‘पूर्व’’ बतला रहा है कि राम और कृष्ण के आने में अन्तर है जिसको समय के और कुछ नहीं कह सकते। ऐसे ही राम कृष्ण के पश्चात् गया, जिससे स्पष्ट है कि राम और कृष्ण के जाने में जो अन्तर है वह समय ही के अपेक्षा से है। राम और कृष्ण साथ-साथ जाते हैं। यहां दोनों के जाने का समय एक ही ज्ञात होता है। वह शीघ्रता करता है अर्थात् कार्य करने में न्यून समय लगता है, इसमें भी समय का पता चलता है, वह देरे से करता है, इसमें भी समय का ज्ञान होता है। उपरोक्त ज्ञान ही समय की सत्ता को बताते है।
व्याख्या :
प्रश्न- क्या पूर्व पश्चात् आदि, काल के लिए नियत कारण है? जो काल की तरह नित्य होने चाहिएं, और नित्य हों तो उनसे काल का ज्ञान भी हो।
उत्तर- पूर्व पश्चात् आदि जो काल के लिंग हैं वे एक-दूसरे की अपेक्षा से होते हैं, इसलिए उनसे काल के होने का प्रमाण मिलता है।
प्रश्न- क्या प्रमाण है कि काल द्रव्य है?