सूत्र :द्रव्यगुणकर्मभ्योऽर्थान्तरं सत्ता 1/2/8
सूत्र संख्या :8
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : सत्ता द्रव्य, गुण और कर्म से पृथक् है, क्योंकि सत्ता यदि गुण होती तो कर्म में पायी जाती। गुण में नहीं पाई जाती कारण कि गुण में गुण नहीं होता यदि द्रव्य होती तो भी ठीक नहीं क्योंकि गुण में द्रव्य नहीं होता। द्रव्य में गुण रहता है। और यदि कर्म होती तो कर्म में विद्यमान न होती क्योंकि कर्म में कर्म नहीं हो सकता। दोनों के बराबर गुण होने से व्याप्त व्यापक का सम्बन्ध नहीं रह सकता। इसको और पुष्ट करने के लिए अगला सूत्र कहते हैं।
प्रश्न- द्रव्य गुण कर्म से पृथक् सत्ता कोई वस्तु सिद्ध नहीं होती, क्योंकि उसको (सत्ता को) उनसे पृथक् नहीं कर सकते।