सूत्र :गुणोऽपि विभाव्यते 7/2/15
सूत्र संख्या :15
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : गुण भी शब्द का विषय है अर्थात् शब्द के द्वारा गुणों को भी कहा जाता है। अर्थात् कहते हैं, कि काला रूप, खट्टा रसादि, किन्तु उस रस और रूपादि के साथ शब्द का संयोग सम्बन्ध नहीं होता। तात्पर्य यह है, कि जिस प्रकार शब्द गुण का द्रव्यों के साथ संयोग नहीं होता ऐसे ही गुणों के साथ भी संयोग सम्बन्ध नहीं होता क्योंकि संयोग कर्म से उत्पन्न होता है, किन्तु आकाशादि द्रव्य से न तो एक वस्तु कर्म मिल सकती है और नहीं दोनों के कर्म से संयोग होता है।
प्रश्न- कर्म के कारण संयोग के न होने का क्या कारण है?