DARSHAN
दर्शन शास्त्र : वैशेषिक दर्शन
 
Language

Darshan

Adhya

Anhwik

Shlok

सूत्र :सामयिकः शब्दादर्थप्रत्ययः 7/2/20
सूत्र संख्या :20

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : शब्द और अर्थ में जो सम्बन्ध है वह संकेत के स्थायी नियम दूसरी सोसाइटी के स्थायी नियम से होता है तात्पर्य यह है, कि शब्द दो प्रकार के हैं एक लौकिक दूसरें वैदिक। वेद के शब्दों का अर्थ के साथ सम्बन्ध संकेत के स्थायी नियम से है अर्थात् इस शब्द से यह अर्थ लेना चाहिए। ऐसा वैदिक शब्दों के अर्थ का ज्ञान होता है और लौकिक शब्दों के अर्थों के लगाव जो सोसाइटी ने नियम परिमाणित कर दिये हैं जिनके भरोसे पर कोषादि तैयार किए जाते हैं उसके द्वारा ज्ञान हो जाता है, इस वास्तु शब्द और अर्थ में संकेत का सम्बन्ध है।

व्याख्या :
प्रश्न- वैदिक और लौकिक शब्दों के अर्थों का भेद किस प्रकार मालूम हो सकता है और किस प्रकार इस बात का ज्ञान होता है, कि यह शब्द लौकिक है और वह वैदिक है क्योंकि दोनों एक से मालूम होते हैं। उत्तर- वेद में सब शब्द लौकिक है रूढ़ी नहीं और लोक में रूढ़ी और योग-रूढ़ी शब्दों को देखकर मालूम हो जाता है, कि यह शब्द वैदिक है और लौकिक है और उसी के अनुसार अर्थ भी लिया जाता है। प्रश्न- लौकिक शब्द किसे कहते हैं? उत्तर- जो वस्तु के गुण को बताने वाला गुणी है जैसे प्रत्येक धनी पुरूष को धनी कहना यह गुण से विरूद्ध नहीं है, यद्यपि वेद का संसार के आदि में परमात्मा की ओर से उपदेश होता है इसलिए उसमें सम्पूर्ण गुण विशिष्ट नाम होते हैं जो किसी विशेष पुरूष पर दलालत नहीं करते, किन्तु गुणों को बताते हैं। प्रश्न- रूढ़ी शब्द किसे कहते हैं? उत्तर- जहां शास्त्र के नियमित किए हुए अवयवों से अर्थ का ज्ञान न हो, किन्तु एक श्रेणी ने उसको मान लिया हो। लोक में किसी निर्धन पुरूष का नाम धनपति रख देते हैं। इस प्रकार और और अर्थ का सम्बन्ध संकेत से होता है। वैदिक शब्दों का अर्थ सोसाइटी अथवा समूह के संकेत से ग्रहण किया जाता है। ईश्वर के एक ही शब्द के दो नियमित अर्थ नहीं हो सकते, किन्तु सोसाइटी के अनुकूल यह नियम नहीं है। जगत् की सम्पूण भाषाएं सोसाइटी के बनाये हुए नियम पर स्थित हुई हैं संस्कृत भाषा के लौकिक ग्रन्थों में विशेषतया सोसाइटी के नियमित नियमों से लिया जाता है किन्तु वैदिक भाषा का सोसाइटी से कोई भी नहीं। जो मनुष्य यह बात नहीं जानते, कि वेदों में केवल यौगिक शब्द है वह वेदों में भी अपनी अल्पज्ञता से इतिहास बतलाते हैं, किन्तु जानने वाले यास्कचार्यादि ऋषि इसके विरूद्ध हैं। इन दो प्रकार के शब्दों के अतिरिक्त योगरूढ़ी शब्द भी होते हैं। जहां पर रूढ़ी नाम में गुण भी वैसे ही पाये जायें जैसे कि विशेष धनी का नाम धनपति रखा गया। यद्यपि धनपति उसका नाम रूढ़ी है, किन्तु उसमें गुण भी पाये जाते हैं। परमात्मा का संकेत जाति से रहने में पाया जाता है इस वास्ते उसके दो भेद यौगिक और लौकिक किए जाते हैं प्रभाकर आचार्य के विचार में वस्तु और व्यक्ति को बताने वाली शक्ति का नाम ही संकेत है और पुराने आचार्यों के विचार में वस्तु व्यक्ति और शक्ल, इन पदार्थों का ज्ञान जिस शब्द और अर्थ का स्थायी नियम के अनुसार सम्बन्ध है। वैदिक शब्दों का ईश्वर के नियम से और लौकिक शब्दों का सोसाइटी के नियम से। अब देश क प्रसंग से परत्व और अपरत्व में जांच होगी।

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: fwrite(): write of 34 bytes failed with errno=122 Disk quota exceeded

Filename: drivers/Session_files_driver.php

Line Number: 263

Backtrace:

A PHP Error was encountered

Severity: Warning

Message: session_write_close(): Failed to write session data using user defined save handler. (session.save_path: /home2/aryamantavya/public_html/darshan/system//cache)

Filename: Unknown

Line Number: 0

Backtrace: