सूत्र :वृक्षाभिसर्पणमित्य-दृष्टकारितम् 5/2/7
सूत्र संख्या :7
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : वृक्ष की जड़ में पानी डाला है वह उलटा मनुष्य की अदृष्ट अर्थात् प्रारब्ध से, जिन्हें उस वृक्ष की छाया, लकड़ी पत्ते, फल फूल आदि से सुख या दुःख प्राप्त करना है, क्यों वह ईश्वर कर्म फल देने वाले के नियम प्रेरित किरणों के साथ मिलकर वृक्ष के भीतर जाकर उसे बढ़ाता है। जो मनुष्य वृक्षों के बढ़ने में जीव को कारण मानकर वृक्षों में वृक्ष का अभिमानी जीव मानते हैं, उन्हे वैशेषिक के इस सूत्र पर ध्यान देना चाहिए।
प्रश्न- जल में यदि कहने की शक्ति मानी जावे और इस प्रकार के पानी का ऊपर जाना, नीचे गिरना और बराबर चलना माना जावे, बर्फ औ और ओलों में सरदी होने से उनका पानी होना तो सिद्ध है, फिर कठोर क्यों हो जाते हैं। पानी को यदि बहने वाला कहा जावे तो बर्फ और ओले क्यों छोस हो जाते हैं और फिर क्यों बहने वाले बन जाते हैं?