सूत्र :विशेषकार्येष्वपि जीवानाम् II1/97
सूत्र संख्या :97
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जो कार्य सामान्य रूप से जगत् में होते है, वह तो परमात्मा की सत्ता से होते है, और जो कार्य विशेष रूप से प्रति शरीर में भिन्न -भिन्न होते है, वे जीव की सत्ता से होते है। संसार के आत्मा को परमात्मा और शरीर के आत्मा को जीवात्मा कहते है।
प्रश्न- यहद प्रत्यक्ष प्रमाण से या और प्रमाणों से ईश्वर की सिद्धि हो गइ, तो वेद का क्या प्रमाण माना जाय? क्योंकि भोतिक पदार्थों का तो प्रत्यक्ष से ज्ञान हो ही जायेगा, और अभौतिक का योगियों के अवाह्य प्रत्यक्ष से हो जाऐगा।