सूत्र :सामान्यतो दृष्टादुभयसिद्धिः II1/103
सूत्र संख्या :103
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : तीन प्रकार के अनुमान होते हैं-पूर्ववत् शेषवत् और सामान्य-तोदृष्ट। पूर्ववत् अनुमान उसे कहते हैं, जैसे धूम को देखकर अग्नि का अनुमान किया जाता हैं, क्योंकि पहले पाकशाला में धूम और अग्नि दोनों देखे थे, वैसे ही अन्यत्र होंगे, इस प्रकार का अनुमान पूर्ववत् कहाता हैं। जो विषय कभी प्रत्यक्षनहीं किया उसका कारण द्वारा अनुमान करना शेषवत् अनुमान कहाता है।, जैसे-स्त्री और पुरूष दोनों को निरोग और हृष्ट-पृष्ट देख कर इनके पुत्रोत्पत्ति होगी यह अनुमान करना मेघ को देखकर जल बरसेगा, यह अनमान करना शेषवत् का उदाहरण है। जिस जातिय विषय को प्रम्यक्ष कर लिया हैं, उसके द्वारा समस्त जाति मात्र के कार्य का अनुमान करना सामान्य तो दृष्ट कहाता हैं, जैसे- दो एक मनुष्य को देखकर यह बात निश्चय कर ली कि मनुष्य के सींग नहीं होते, तो अन्य मनुष्य मात्र के सींग न होंगे। यह सामान्यतोद्ष्ट का उदाहरण है। इसी भांति सामान्यतोदृष्ट अनुमान में यह बात भी आ सकती है, कि जैसे बिना कारण के कार्य की अनुत्पत्ति सामान्यतोदृष्ट है। इससे यह निश्चय कर लेना चाहिये कि जहां-जहां कार्यं होगा, वहां-वहां कारण अवश्य होगा।