सूत्र :उभयथाप्यसत्करत्वम् II1/94
सूत्र संख्या :94
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : इस प्रकार मुक्त, बद्ध दोनों के चेतन से सृष्टि का होना अनुमान सिद्ध न होगा। इसलिए मानसिक प्रत्यक्ष अवश माना पड़ेगा। ईश्वर योगियों को समाधि अवस्था में प्रत्यक्ष होते है, क्योंकि स्थिर मन के बिना ईश्वर का बोधक कोई प्रमाण नह। ईश्वर बद्ध और मुक्त दोनों प्रकार का नही कह सकते, क्योंकि दोनों सापेक्ष है। अर्थात् जो पहिले बंधा हो, वह ही बंध छूटने से मुक्त कहला सकता है। ईश्वर इन दोनों अवस्थाओं से पृथक् है। जगत् का करना उसका स्वभाव है इसलिए इच्छा की आवश्यकता नही।
प्रश्न- एक वस्तु में दो विरूद्ध स्वभाव हो नही सकते। यदि रचना ईश्वर का स्वभाव मानोगे तो विनाश किसका स्वभाव मानोगे।
उत्तर- यह शंका परतन्त्र और अचेतन में हो सकती है क्योंकि कर्ता स्वतन्त्र होता है और स्वतन्त्र उसे कहते है, जिसें करने, न करने और उल्टा करने की सामथ्र्य हो।