सूत्र :उभयसिद्धिः प्रमाणात्तदुपदेशः II1/102
सूत्र संख्या :102
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जब तक मनुष्य को वस्तु का सामान्य ज्ञान हो, परन्तु यथार्थ ज्ञान न हो, तब तक वह संशय कहाता है। संशय की निवृत्ति बिना प्रमाण के हो नहीं सकती और संशय की निवृत्ति के बिना प्रवृत्ति नहीं हो सकती। प्रमाण के आत्म, अनात्म, सद्, दोनों प्रकार की सिद्धि होती हैं, इसी कारण प्रमाण का उपदेश किया है।