सूत्र :मुक्तबद्धयोरन्यतराभावान्न तत्सिद्धिः II1/93
सूत्र संख्या :93
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : संसार में कोई चेतन मुक्त और बद्ध से भिन्न नही। यदि तुम ईश्वर को बद्ध मानो तो वह सृष्टि करने की शक्ति नही रखता। यह मुक्त मानो तो इच्छा के अभाव से सृष्टि उत्पन्न नही कर सकता क्योंकि संसार में जितनी सृष्टि को नियमित देखते है, वह कर्ता की इच्छा से होती है।