सूत्र :तत्संनिधानादधिष्ठातृत्वं मणिवत् II1/96
सूत्र संख्या :96
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : प्रकृति त्रिया रहित है। उसको त्रिया शक्ति ईश्वर की समीपता से प्र्राप्त होती है, जैसे मणि को कांच की समरपता से सुरखी प्राप्त होती है, परमात्मा में इच्छा के न होने से उसे अकत्र्ता कहा जाता है, और बिना उसकी समीपता के प्रकृति करने में असमर्थ है, जैसे बिना हाथ के जीव उठा नही सकता, इस वास्ते कहते है, उठाना जीव का धर्मं नही, परन्तु कत्र्ता हाथ में जीव त्रिया शक्ति नही इस वास्ते जीवात्मा को कत्र्ता माना जाता है।