सूत्र :ईश्वरासिद्धेः II1/92
सूत्र संख्या :92
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : मानसिक प्रत्यक्ष के न मानने से ईश्वर की सिद्धि न होगी क्योंकि रूप न होने से वह चक्षु का विषय नही, सुगन्ध न होने से वह नासिक का विषय नही, रस न होने से वह रसना का विषय नही। जब ईश्वर का प्रत्यक्ष न हुआ तो अनमान भी न होगा, क्योंकि अनमान प्रत्यक्ष पूर्वक होता है। जिनका काल में प्रत्यक्ष न हो उसमें अनुमान हो ही नही सकता और शब्द प्रमाण से भी काम न चलेगा, क्योंकि वेद के ईश्वर-वाक्य होने से वेद को प्रमाण मानते है। जब ईश्वर स्वयं असिद्ध होगा तो उाका वाक्य वेद कैसे प्रमाण माना जाएगा? यहां अन्यान्याश्रय दोष है, क्योंकि ईश्वर की सिद्धि बिना, वेद का प्रमाण हो नही सकता, और वेद के बिना ईश्वर-वाक्य सिद्ध हुए प्रमाण ही नही हो सकता।