सूत्र :यत्सम्बद्धं सत्तदाकारोल्लेखि विज्ञानं तत्प्र-त्यक्षम् II1/89
सूत्र संख्या :89
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जिस सामने उपस्थित पदार्थ के साथ ज्ञानेन्द्रिय का सम्बन्ध हो और मन को भी उस इन्दिंय के द्वारा उसका यथार्थ बोध हो जाय, तो उसे प्रत्यक्ष ज्ञान कहते है और इस ज्ञान का कारण ज्ञानेन्द्रिय और मन की वृत्ति है। इसलिए मन और इन्द्रियें प्रत्यक्ष प्रमाण कहलाती है और इनका विषय केवल प्राकृत पदार्थ ही है। प्रत्यक्ष से अप्राकृत पदार्थों का ज्ञान नही हो सकता।
प्रश्न- योगियों को तीनों काल के पदार्थों का साक्षात ज्ञान हो सकता है और योगी समाधि अवस्था में आत्मा और अन्दर के पदार्थों को पत्यक्ष करता है, इस वास्ते तुम्हारा पत्यक्ष लक्षण ठीक नही?