सूत्र :द्वयोरेकतरस्य वाप्य-संनिकृष्टार्थपरिच्छित्तिः प्रमा तत्साधकतमं यत्तत् II1/87
सूत्र संख्या :87
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : ज्ञाता और ज्ञेय के पास-पास होने से जो ज्ञान होता है, उसे प्रमा कहते है। इस प्रमा के साधन तीन प्र्रकार के प्रमाण है- एक प्रत्यक्ष, दूसरा अनुमान, तीसरा शब्द। जो पदार्थं भोतिक और समीप है उनका ज्ञान प्रत्यक्ष प्रमाण से होता है, और जो पदार्थ अभौतिक तथा दूर है, उनका शब्द और अनुमान से होता है,यहां दूर का आशय परोक्ष है। जिन पदार्थों का तीन काल प्रत्यक्ष न हो उनका शब्द प्रमाण से बोध होता है। यहां शब्द का आशय योगी और ईश्वर की आज्ञा है। जहां भोतिक पदार्थों का परोक्ष होने में शब्द प्रमाण लिया गया है, वहां सत्यवादी आप्त पुरूष का वाक्य समझना चाहिए।