सूत्र :निजमुक्तस्य बन्धध्वंसमात्रं परं न समानत्वम् II1/86
सूत्र संख्या :86
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : कर्मं का फल तो भावरूप सुख है, इसलिए वह अनित्य है, परन्तु ज्ञान का फल तो अविद्या का विनाश रूप है। जब कार्याभाव रूप न ही तो उसका नाश होगा। दूसरे कर्म देहात्म विशिष्ट से होता है, और उसका फल भी देहात्मा मिलकर भोगते है, परन्तु देह विनाशी है, इसलिए कर्म का फल भी विनाशी है ज्ञानात्मा का धर्म आत्मा में नित्य हो सकता है।