सूत्र :दुःखाद्दुःखं जलाभि-षेकवन्न जाड्यविमोकः II1/84
सूत्र संख्या :84
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जो कर्म शरीर से उत्पन्न होता है और शरीर के न होने पर नही होता, इस वास्ते कर्म स्वयं दुःख रूप या अविद्या स्वरूप है। जिस प्रकार दुःख से दुःख का नाश नही होता, उसी प्रकार कर्म से दुःख का नाश नही हो सकता, जैसे- जल नहाने से शीत बढ़ता हैद्व नाश नही होता, ऐसे ही विवेक रहित कर्म से मुक्ति नही होती नही होती।