सूत्र :अबाधाददुष्टकारणजन्यत्वाच्च नावस्तुत्वम् II1/79
सूत्र संख्या :79
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : यदि कहो जगत् भी अवस्तु है, तो कहना ठीन नही, क्योंकि न तो स्वप्न पदार्थों के तुल्य जगत् का किसी अवस्था विशेष में बोध होता है, जैसे स्वप्न के पदार्थों का जाग्रत अवस्था में बोध हो जाता है औ न जगत् किसी इन्द्रिय के दोष से प्रतीत होता है, जैसे- पीलिया रोग अवस्था में सब वस्तुओं को पीला प्रतीत करता ह परन्तु यह पीलापन सत्य नही। जगत् इस प्रकार के किसी दोषयुक्त कारण से उत्पन्न नही हुआ, जगत् इस प्रकार को अवस्तु नही कह सकते।