सूत्र :न गतिविशेषात् II1/48
सूत्र संख्या :48
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : गति के तीन अर्थ है -ज्ञान, गमन, प्राप्ति। ये तीनों बंधन का हेतु नही होते। पहले जब कहा जावे कि ज्ञान विषेश से बन्धन होता है। ज्ञान तीन प्रकार का है- प्रातिभासिक, व्यावहारिक, पारमार्थिक। यदि कहा जावे कि प्रातिभासिक सत्ता के ज्ञान से बन्धन होता है तो ये कहना ठीक नही क्योंकि प्रातिभासिक सत्ता का ज्ञान इन्द्रिय और न संस्कार दोष से उत्पन्न होता है, परन्तु आत्मा में न इन्द्रिय है न संस्कार है, इसी लिए जिसका कारण है ही नही उसका कार्य कैसे हो सकता है। और रहा व्यवहारिक ज्ञान, सो तो बद्ध अवस्था को छोड़ रहता ही नही, वह बन्ध का कारण किस प्रकार हो सकता है और पारमार्थिक ज्ञान तो मुक्ति का हेतु है वह बन्ध का कारण क्यों कर हो सकता है, अतैव ज्ञानविशेष से बन्ध नही होता। दूसरा गमन शरीरादि में होता है, वह जीव का स्वाभाविक धर्म होने से बन्ध का हेतु नही हो सकता।