सूत्र :न कर्मणाप्यतद्धर्मत्वात् II1/52
सूत्र संख्या :52
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : कर्म से भी बन्धन नही होता, क्योंकि वह भी शरीर सहित आत्मा में होता है और शरीर सुख-दुःख भोगने से होता है। इसलिए कर्म से पहिले शरीर का होना आवश्यक है और शरीर होने से बन्धन भी है, उसके उत्पन्न होने की आवश्यकता नही।