सूत्र :उभयपक्षसमानक्षमत्वादयमपि II1/46
सूत्र संख्या :46
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जिस प्रकार क्षणिकवादी और विज्ञानवादी का मत प्रत्यभिज्ञादि दोष बाह्य प्रतीति से खण्डित हो जाता है, इसी प्रकार शून्यवादी का मत भी खण्डित हो जाता है। क्योंकि उस दशा में पुरूषार्थ का बिल्कुल अभाव हो जाता है। यदि यह कहो कि शून्यवाद करने पर भी पुरूषार्थ तो स्वीकार करते है, तो वह भी मानना आयुक्त होगा।