सूत्र :निर्गुणादिश्रुतिवि-रोधश्चेति II1/54
सूत्र संख्या :54
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : यदि उपादि के बिना पुरूष का बन्धन माना जावे जिन सूत्रों में जीव को साक्षिरूप और निर्गुण बतलाया है उनमें दोष आ जायेगा, इसलिए जीव स्वभाव से बद्ध है न मुक्त है वरन् यह दोनों औपाधिक धर्म है, प्रकृति के संसर्गं से बद्ध हो जाता है और परमात्मा के संसर्गं से मुक्त हो जाता है। यथार्थ में जीव सुख-दुःख से पृथक और तीनों तापों से किनारे साक्षिरूप है। इस सूत्र में इति शब्द कहने से बन्धन के कारण की परीक्षा समाप्त कर दी गई है।