सूत्र :शून्यं तत्त्वं भावो विनश्यति वस्तुधर्मत्वाद्विनाशस्य II1/44
सूत्र संख्या :44
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जितने पदार्थ है सब शून्य है, और जो कुछ भाव है, वह सब नाशवान है और जो विनाशी है, स्वप्न की भांति मिथ्या हैं इससे सम्पूर्ण वस्तुओं के आदि और अन्त का तो अभाव सिद्ध ही हो गया। अब रहा केवल माध्यभाग सो यथार्थ नही तब कौन किसको बांध सकता है? और कौन छोड़ सकता है? इस हेतु से बन्ध मिथ्या ही प्रतीत होता है। विद्यमान वस्तुओं का नाश इसलिए है कि नाश होना वस्तुमात्र का धर्म है। इस शून्यवादी के पूर्वपक्ष का खण्डन करते है।