सूत्र :मूर्त्तत्वाद्घटादिव-त्समानधर्मापत्तावपसिद्धान्तः II1/50
सूत्र संख्या :50
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : आत्मा के मूर्तिमान होने से घटादिकों की भांति सावयव इत्यादि दोष आ जायेंगे सावयव होने से संयोग वियोग अर्थात् उत्पत्ति और नाश भी मानना पड़ेगा। जो कि आत्मा नित्य है, इसलिए मूर्ति वाला नही हो सकता और जब मूर्तिवाला नही तो उसमें इस प्रकार की गति भी नही मानी जा सकती। अतएव आत्मा को मूर्तिवाला मानना सिद्धांत का खंडन करना है।