सूत्र :अपुरुषार्थत्वमुभयथा II1/47
सूत्र संख्या :47
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : शून्यवादी के मत में पुरूषार्थ अर्थात् मुक्ति नही हो सकती, क्योंकि जब दुःख है ही नही केवल शून्य ही है तो उसकी निवृत्ति का उपाय क्यों किया जावे और मुक्ति भी शून्य ही होगी उसके लिए साधन भी शून्य ही होंगे, तो ऐसे शून्य पदार्थ के लिए पुरूषार्थ भी शून्य ही होगा। अतैव शून्यवादी का मत किसी प्रकार भी शान्ति-दायक नही और न उससे मुक्ति हो सकती है।