सूत्र :तदभावे तदभावाच्छून्यं तर्हि II1/43
सूत्र संख्या :43
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : यदि तुम जगत् को बाह्य न मानो केवल भीतर ही मानोगे तो इस दीखते हुए संसार में विज्ञान का भी अभाव मानना पड़ेगा और जगत् का शून्य कहना पड़ेगा। इसका कारण यह है कि प्रतीति विषय का साधन करने वाली होती है, इसलिए यदि बाह्य प्रतीत जगत् का साधन न करे तो विज्ञान प्रतीत भी विज्ञान को नही सिद्ध कर सकती इस हेतु से विज्ञानवाद में शून्यवाद हो जायेगा।
प्रश्न- अब शून्यवादी नास्तिक अपनी दलोल देता है।