सूत्र :अपवादमात्र-मबुद्धानाम् II1/45
सूत्र संख्या :45
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जो कुछ मात्र पदार्थ हैं वह सब नाशमात्र् है’ यह कथन मूर्खों का अपवाद मात्र है, क्योंकि नाशमात्र वस्तु का स्वभाव कह कर, नाश में कुछ कारण न बताने से जिन पदार्थों का कुछ अवयव नही है उनका नही कह सकते। इसका हेतु यह कि कारण में लय हो जाने को ही नाश कहते है और जब निरवयव वस्तुओं को कुछ कारण न माना तो उसका लय किसी में न होने से उनका नाश न हो सकेगा। इसके सिवाय एक और भी दोष रहेगा कि हर एक कार्य का अभाव लोक में नही कह सकते, जैसे- ‘‘घट टूट गया’’ इस कहने से यह ज्ञात होगा कि घट की दूसरी दशा हो गई परन्तु घटरूपी कार्यं तो बना ही रहा। आकृति को इस हेतु से माना कि वह एक घट के टूट जाने से दूसरे घटों में तो रहती है।
अब तीनों लक्षणों को खंडन करते है अर्थात्-विज्ञानवादी क्षणिकवादी और शून्यवादी।