सूत्र :गतिश्रुतिरप्युपाधियोगादाकाशवत् II1/51
सूत्र संख्या :51
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : शरीर के सब अवयवों में जो गति है अर्थात् दूसरे शरीरों में जो गमन है वह सूक्ष्म शरीर में न हो तब तक एक शरीर छोड़कर दूसरे शरीर मे नही जा सकता,जैसे-आकाश घट की उपाधि से चलता है, क्योंकि घट में जो आकाश है जहां घट जाएगा साथ ही जाएगा।